प्रेमार्द्र – OVERFLOWING in LOVE – Free Verse Hindi Poetry Contest
Last date for entries: 31-12-2018
रीति काल
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कविता निमंत्रण
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कविता निमंत्रण
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१५९७ की जायसी की पदमावत,
खर्जूरपुर की शिल्प-कृत कल्पना,
राजा रवि वर्मा की चेष्टालु तूलिका,
भरतनाट्यम, कत्थक और ओड़िसी,
मेघदूत के व्याख्यान- संदेश
प्रेम के तर्क-शात्र के आधार,
गुनाहों का देवता में सुधा की इच्छा,
पाब्लो-नारूड़ा की कविताओं
जीव जीवन के हज़ारों सत्य,
आभासों की संजीवनी
स्त्री के श्रृंगार और समाज के
अनन्त रिवाज़ों में छिपे पवित्र-चिन्हों
कविमन के अमूर्त छवियों
वास्तविक्ता के संकुचित आभासों
मन की आज़ादी को शब्दों की
बेड़ियों में बांधकर जीवन को
जीने वाला कवि-हृदय को आवाहन है
~ आनन्द खत्री “सूफ़ी बेनाम”
आज की आधुनिक कविता साहित्य में एक खालीपन है।
हिन्दी भाषा में श्रृंगार लेखन और जीव- जीवन के प्रेमाख्यान हर रचनाकार लिखता है , मगर उनको अपने तक सीमित रखता है , या ख़ास दोस्तों को सुनाता है।
ये प्रसंग हमारे समाज की रीतियों के कारण दबे ही रह जाते हैं।
कृपया अपनी रचनायें भेजें।
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भेजी हुई रचना के भाव – रीतिकाल की छवियों के होने चाहिये।
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रीति काल
सन् १७०० ई. के आस-पास हिंदी कविता में एक नया मोड़ आया।
इसे विशेषत: तात्कालकि दरबारी संस्कृति और संस्कृत साहित्य से उत्तेजना मिली।
संस्कृत साहित्यशास्त्र के कतिपय अंशों ने उसे शास्त्रीय अनुशासन की ओर प्रवृत्त किया।
हिंदी में ‘रीति‘ या ‘काव्यरीति‘ शब्द का प्रयोग काव्यशास्त्र के लिए हुआ था। इसलिए काव्यशास्त्रबद्ध सामान्य सृजनप्रवृत्ति और रस, अलंकार आदि के निरूपक बहुसंख्यक लक्षणग्रंथों को ध्यान में रखते हुए इस समय के काव्य को ‘रीतिकाव्य’ कहा गया।
इस काव्य की शृंगारी प्रवृत्तियों की पुरानी परंपरा के स्पष्ट संकेत संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, फारसी और हिंदी के आदिकाव्य तथा कृष्णकाव्य की शृंगारी प्रवृत्तियों में मिलते हैं।
रीतिकाल के कवि राजाओं और रईसों के आश्रय में रहते थे।
वहाँ मनोरंजन और कलाविलास का वातावरण स्वाभाविक था।
बौद्धिक आनंद का मुख्य साधन वहाँ उक्तिवैचित्रय समझा जाता था।
ऐसे वातावरण में लिखा गया साहित्य अधिकतर शृंगारमूलक और कलावैचित्रय से युक्त था।
पर इसी समय प्रेम के स्वच्छंद गायक भी हुए जिन्होंने प्रेम की गहराइयों का स्पर्श किया है।
मात्रा और काव्यगुण दोनों ही दृष्टियों से इस समय का नर-नारी-प्रेम और सौंदर्य की मार्मिक व्यंजना करनेवाला काव्यसाहित्य महत्वपूर्ण है ।
रीतिकाव्य मुख्यत: मांसल शृंगार का काव्य है।
इसमें नर-नारीजीवन के रमणीय पक्षों का सुंदर उद्घाटन हुआ है।
अधिक काव्य मुक्तक शैली में है, पर प्रबंधकाव्य भी हैं। इन दो सौ वर्षों में शृंगारकाव्य का अपूर्व उत्कर्ष हुआ।
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सूफ़ी कवियों का उद्देश्य था जन -जीवन में प्रेम सन्देश फैलाना।
रीति काल में सूफ़ियों को भी प्रेमाख्यानों के माध्यम से प्रेम की बात कहने में सरलता हुई।
सम्पूर्ण सूफ़ी साहित्य में सौंदर्य की एक प्राणधारा दिखाई पड़ती है। यही सौंदर्य दृष्टि साहित्य की आत्मा होती है।
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आप सब से प्रेमाख्यान, प्रेम चित्रण, दम्पत्य, काम, सत, अध्यात्म, श्रृंगार आदी की रचनायें आमंत्रित हैं।
ईमेल यहीं भेजें और शीर्षक शीर्षक में आपका जो नाम आप देना चाहते हैं रचना के साथ , वो नाम लिखें “रीति काल – नाम “
धन्यवाद
आनन्द खत्री